रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Wednesday, 3 August 2022

तुलसीदास

 “पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर||"

तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर में,13 अगस्त 1532 में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे और माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास अपने जन्म के समय रोए नहीं थे। वह सभी बत्तीस दांतों के साथ पैदा हुआ था। बचपन में उनका नाम रामबोला दुबे था ।

एक पौराणिक कथा के अनुसार तुलसीदास को इस दुनिया में आने में 12 महीने लगे, तब तक वे अपनी मां के गर्भ में ही रहे। उसके जन्म से 32 दांत थे और वह पांच साल के लड़के जैसा दिखता था। अपने जन्म के बाद, वह रोने के बजाय राम के नाम का जाप करने लगा। इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया|


उनके जन्म के बाद चौथी रात उनके पिता का देहांत हो गया था। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं कवितावली और विनयपत्रिका में बताया था कि कैसे उनके माता-पिता ने उनके जन्म के बाद उनका परित्याग कर दिया।

चुनिया (उनकी मां हुलसी की दासी) तुलसीदास को अपने शहर हरिपुर ले गई और उनकी देखभाल की। महज साढ़े पांच साल तक उसकी देखभाल करने के बाद वह मर गई। 

उस घटना के बाद, रामबोला एक गरीब अनाथ के रूप में रहता था और भिक्षा माँगने के लिए घर-घर जाता था। यह माना जाता है कि देवी पार्वती ने रामबोला की देखभाल के लिए ब्राह्मण का रूप धारण किया था।

उन्होंने अपनी पहली शिक्षा अयोध्या में शुरू की। उन्होंने अपने महाकाव्य रामचरितमानस में उल्लेख किया है कि उनके गुरु ने उन्हें बार-बार रामायण सुनाई। 

जब वे मात्र 15-16 वर्ष के थे तब वे पवित्र शहर वाराणसी आए और वाराणसी के पंचगंगा घाट पर अपने गुरु शेष सनातन से संस्कृत व्याकरण, हिंदू साहित्य और दर्शन, चार वेद, छह वेदांग, ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया।

अध्ययन के बाद, वे अपने गुरु की अनुमति से अपने जन्मस्थान चित्रकूट वापस आ गए। वह अपने परिवार के घर में रहने लगा और रामायण की कथा सुनाने लगा।

तुलसी दास को अपनी पत्नी से बहुत लगाव था। वह उससे एक दिन का भी अलगाव सहन नहीं कर सका। 

एक दिन उसकी पत्नी बिना पति को बताए अपने पिता के घर चली गई। तुलसीदास रात को चुपके से अपने ससुर के घर उनसे मिलने गए। इससे बुद्धिमती में शर्म की भावना पैदा हुई।

उन्होंने तुलसी दास से कहा, “मेरा शरीर मांस और हड्डियों का एक जाल है। यदि आप भगवान राम के लिए मेरे गंदे शरीर के लिए अपने प्यार का आधा भी विकसित करेंगे, तो आप निश्चित रूप से संसार के सागर को पार करेंगे और अमरता और शाश्वत आनंद प्राप्त करेंगे। 

ये शब्द तुलसी दास के हृदय को तीर की तरह चुभ गए। वह वहां एक पल के लिए भी नहीं रुका। उन्होंने घर छोड़ दिया और एक तपस्वी बन गए। उन्होंने तीर्थ के विभिन्न पवित्र स्थानों का दौरा करने में चौदह वर्ष बिताए।


तुलसी दास ने अपनी कई रचनाओं में भगवान हनुमान से मुलाकात होने का वर्णन किया है। तुलसीदास की पहली मुलाकात भगवान हनुमान से वाराणसी में हुई थी जहाँ वह भगवान हनुमान के चरणों में गिर गए और चिल्लाए :

‘मुझे पता है कि तुम कौन हो इसलिए तुम मुझे छोड़कर दूर नहीं जा सकते’ और भगवान हनुमान ने उन्हें आशीर्वाद दिया। 

उन्होंने 1631 में चैत्र मास की रामनवमी को अयोध्या में रामचरितमानस लिखना शुरू किया। उन्होंने 1633 में मार्गशीर्ष महीने के राम और सीता विवाह पंचमी (विवाह दिवस) पर दो साल, सात महीने और छब्बीस दिनों में रामचरितमानस का अपना लेखन पूरा किया। ।
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में परमात्मा के प्रति भक्ति पर अधिक बल दिया गया है। तुलसीदास के बारह उत्कृष्ट कार्यों में से रामचरितमानस सबसे प्रसिद्ध था।






Tuesday, 2 August 2022

श्री कल्कि अवतार

विष्णु का दसवां अवतार, पापियों का नाश करने वाला और धर्म का रक्षक श्री कल्कि अवतार की हार्दिक शुभकामनाएँ!! 

धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी ‘कल्कि अवतार’ प्रकट होगा। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। भगवान का यह अवतार " निष्कलंक भगवान " के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि ६४ कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार होंगे |

सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

अर्थ- शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।

स्कंद पुराण के दशम अध्याय में स्पष्ट वर्णित है कि कलियुग में भगवान श्रीविष्णु का अवतार श्रीकल्कि के रुप में सम्भल ग्राम में होगा। 'अग्नि पुराण' के सौलहवें अध्याय में कल्कि अवतार का चित्रण तीर-कमान धारण किए हुए एक घुड़सवार के रूप में किया हैं और वे भविष्य में होंगे। कल्कि पुराण के अनुसार वह हाथ में चमचमाती हुई तलवार लिए सफेद घोड़े पर सवार होकर, युद्ध और विजय के लिए निकलेगा तथा बौद्ध, जैन और म्लेच्छों को पराजित कर सनातन राज्य स्थापित करेगा। पुराणों की यह धारणा की कोई मुक्तिदाता भविष्य में होगा सभी धर्मों ने अपनाई।

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नारसिंहोऽथ वामनः । 

रामो रामश्च रामश्च कृष्णः कल्किश्च ते दशः ॥

पुराणों में कल्कि अवतार के कलियुग के अंतिम चरण में आने की भविष्यवाणी की गई है। अभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है लेकिन अभी से ही कल्कि अवतार के नाम पर पूजा-पाठ और कर्मकांड शुरू हो चुके हैं। कुछ संगठनों का दावा है कि कल्कि अवतार के प्रकट होने का समय नजदीक आ गया है और कुछ का दावा है कि कल्कि अवतार हो चुका है। कल्कि अवतार को लेकर हिन्दुओं में यह भ्रम और मतभेद क्यूं हैं? क्या शंकराचार्य इसे स्पष्ट करने की जिम्मेदारी नहीं रखते हैं?

वर्तमान में भगवान कल्कि के नाम पर उत्तरप्रदेश में संभल ग्राम में एक मंदिर बना है। उनके नाम पर दिल्ली आदि क्षेत्रों में ऑडियो, वीडियो, सीडी, पुस्तक आदि साहित्य सामग्री का विकास कर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। उनके नाम की आरती, चालीसा, पुराण आदि मिलते हैं। उत्तर प्रदेश में सक्रिय कल्कि वाटिका नामक संगठन का दावा है कि कल्कि अवतार के प्रकट होने का समय नजदीक आ गया है। इन लोगों का मानना है कि देवी जगत में कल्कि अवतार हो गया है। स्वप्न, जागृत और वाणी अनुभवों द्वारा वे भक्तों को संदेश दे रहे हैं। उनकी महाशक्तियां भक्तों की रक्षा के लिए इस जगत में चारों ओर फैल चुकी हैं, अब बस उनका केवल प्राकट्य शेष है। इसका तार्किक आधार यह है कि अवतार किसी समयसीमा में बंधा नहीं होता। उसके प्राकट्य के अपने मापदंड होते हैं। 
हिन्दू धर्म के पतन का एक मुख्‍य कारण यह है कि हर वह कार्य किया जा रहा है जिसका वेदों में उल्लेख नहीं मिलता है। हिन्दुओं के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है गीता। इतिहास ग्रंथ महाभारत का एक हिस्सा है गीता। रामायण, पुराण और स्मृतियां भी इतिहास और व्यवस्था को उल्लेखीत करने वाले ग्रंथ है, धर्मग्रंथ नहीं।


Monday, 1 August 2022

नागपंचमी

श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है।
 पौराणिक काल से नाग पंचमी के तिथि पर नागदेव की पूजा की जाती है क्योंकि पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। नाग पंचमी के दिन विधि-विधान से नागों की पूजा होती है। सावन का महीना चल रहा है और सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा आराधना की जाती है। नाग देवता भगवान शिव की गले की शोभा बढ़ाते हैं। ऐसे में नाग पंचमी के दिन नागों की उपासना का विधान है। 
मान्यता है नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने पर कुंडली में मौजूद कालसर्प और राहु दोष दूर हो जाता है। इसके अलावा जीवन के सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस बार नाग पंचमी पर कई शुभ योग बन हुआ है। ऐसे में नाग पंचमी के अवसर पर भगवान शिव के साथ नाग देवता की पूजा करने पर सभी तरह के सुख की प्राप्ति की जा सकती है।
जय नाग देवता 

Sunday, 31 July 2022

रक्षाबंधन उत्सव.

देवान भावयतानेन, ते देवा भाव यन्नुवः। परस्परं भाव यन्तः, श्रेयः परम वाप्स्यथः।। ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये भगवान जिस श्रेयमार्ग को दिखाता है उस अंतर संबद्धता का महोत्सव है श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबंधन उत्सव. भयानक पराजय व पलायन के बावजूद देवेन्द्र के नेतृत्व में देवगण अमरावती के ऊपर अपना वर्चस्व पुनर्स्थापित करने के लिये एक अनुष्ठान के रूप में रक्षाबंधन को अपनाते हैं ऐसा इतिहास में वर्णन आता है. आपस में जोड़ने वाला आंतरिक पवित्र सुवर्ण सूत्र तोड़ने से देवों की पराजय प्रांरभ हो गई. एकता और अपनेपन का भाव नष्ट होने के कारण देवत्व लुप्त हो कर वे सामान्य बन गये. गुरू के आदेशानुसार हुये रक्षाबंधन से उनको सम्पतियाँ वापस मिलती है. देवी संपत्ति वापस आने पर वे शक्तिशाली होकर संपूर्ण विश्व को बचाते हैं. अपनेपन के भाव से एकात्म बनकर, परस्पर भावयन्तः के आधार पर वे एक श्रेष्ठ लक्ष्य को पाने के लिये अधर्म के विरूद्ध संघर्ष करने के लिये आगे आते हैं. आसूरी शक्तियों के ऊपर विजय प्राप्त करते हैं. इस कहानी से प्रेरणा पाकर हर श्रावण माह की पूर्णिमा को राखी बांधकर रक्षाबंधन मनाने का क्रम हिन्दुओं ने शुरू किया. भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो प्रत्येक महत्वपूर्ण क्षणों में रक्षाबंधन से उसके गौरवमय दायित्व को निभाने की झलक मिल जायेगी. विदेशी आक्रमण का मुकाबला करने के लिये रण बांकुरो को सजाने में, मुगल अत्याचारों के विरूद्ध राजपुत्रों ने जो मोर्चा खड़ा किया, उसके पीछे तथा बांटकर राज करने के ब्रिटिश षड्यंत्रों को पराभूत करने में रक्षाबंधन से मिला हुआ जोश एवं स्फूर्ति कारक थी. जाति, वर्ण के ऊपर उठकर राष्ट्र के लिये प्राण देने की प्रेरणा रक्षाबंधन ने दी है. राष्ट्र को परमवैभव के शिखर तक ले जाने के लिये स्थापित हुये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूलभूत कार्यों जैसे व्यक्ति निर्माण, स्वत्व जागरण, समरस समाज निर्माण, समाज संगठन आदि रक्षाबंधन के आधारभूत मूल्यों के साथ मेल खाते हैं. इसलिये संघ की शाखाओं में मनाये जाने वाले राष्ट्रीय उत्सवों में रक्षाबंधन भी शामिल हो गया. रक्षाबंधन के उद्भव के पीछे का भाव व तत्व कितना महत्वपूर्ण था इसके बारे में बहुत कुछ कहा गया. स्वत्व जागरण एवं स्वातंत्र्य हासिल करने के लिये हुये संघर्ष के कालखंड में रक्षाबंधन ने धार्मिक और राष्ट्रीय भूमिका को कैसे निभाया यह भी प्रारंभ में वर्णन किया है. लेकिन बाद में इतिहास की तेज गति के साथ रक्षाबंधन एक उत्सव मात्र बन गया. इस अवस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा के द्वारा रक्षाबंधन एक सामाजिक आयाम बन गया है. इसके साथ-साथ संपूर्ण समाज को संगठित, सशक्त बनाने के संघ के लक्ष्य को सार्वजनिक रक्षाबंधन उत्सवों के द्वारा बहुत ज्यादा प्रेरणा मिलती है. सही अर्थ में समाज को संगठित व सशक्त बनाना है तो उसकी पूर्व शर्तों में सर्वप्रथम समरसता का अनुभव सर्वत्र पहुँचाने का कार्य है. प्रत्येक व्यक्ति के अंदर, मैं समाज का एक अभिन्न अंग हूँ ऐसा भाव जगना चाहिये. इस प्रेरणा के बिना समाज हित के लिये कार्य करने की अनुभूति जगाना कठिन होता है. सबल, सम्पन्न समाज खड़ा करने में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है. समाज का पिछड़ापन मेरी कमजोरी है, उस कमजोरी को दूर करने के लिये समाज में रचनात्मक कार्य शुरू करने होंगे. समाज का एक वर्ग या व्यक्ति अगर दुर्बल है तो, समाज उस हिसाब से दुर्बल है. समाज की दुर्बलता को ठीक किये बिना समाज आगे नहीं बढ़ेगा. समाज के सभी सदस्यों ने अपने आप आगे आकर, पिछड़े हुये बंधुओं को आगे करने के लिये प्रयत्न करना चाहिये. ऐसा होता है तो पूरे समाज में विशेषतः दुर्बल वर्ग में और मेरे अंदर एक ही चेतना विद्यमान है अथवा हम सब एक ही हैं का बोध निर्माण होगा. समरसता की अनुभूति जगाना है तो, हम सब कौन है यह समझना चाहिये. अपने समाज के संदर्भ में विचार किया तो यह मालूम हो जायेगा कि हम सब हिन्दु है. अपना स्वत्व हिन्दुत्व ही है. समाज को जोड़ने वाली शक्ति अर्थात् हिन्दुत्व को ठीक से समझकर उस आधार पर आगे बढना. स्वामी विवेकानंद जी ने इसीलिये बिना संदेह के यह सत्य बताया ‘‘then and then alone you are a hindu when the very name sends through a galvanic stroke of strength ’’ तब ही आप हिन्दु बनेंगे. जब हिन्दु नाम सुनकर ही आपके शरीर में शक्ति का एक विद्युत प्रवाहित हो जायेगा. आगे चलकर उन्होंने यह भी कहा है कि एक हिन्दु का दुःख एवं कष्ट आपके हृदय को अनुभव करना चाहिये. वह दीन-दुःखी व्यक्ति आपका ही पुत्र है, ऐसा जब आपको लगेगा उसी वक्त आप हिन्दु हो जायेंगे. इस में दो पहलू है. पहली बात हिन्दुत्व बोध और दूसरी बात, हम सब एक है ऐसी भावना है. मतलब स्वत्व बोध से समरसता की अनुभूति जगेगी. आर्थिक या सामाजिक या सांस्कृतिक, किसी भी प्रकार का पिछड़ापन अगर समाज में रहता है तो, उसको दूर करते हुये, उन बंधुओं को आगे ले जाने की जरूरत है. उसके बिना देश का विकास संभव नहीं है. यह सत्य समझकर प्रत्येक व्यक्ति ने स्वार्थ छोड़कर अपनेपन के भाव से समाज के लिये कार्य करना चाहिये. यह प्रेरणा रक्षाबंधन देता है. उन लोगों की उन्नति का संपूर्ण दायित्व अपने मन में लेने का संकल्प इस रक्षाबंधन की पवित्र बेला में हमें लेना चाहिये. – जे. नन्द कुमार (अ.भ.सह-प्रचार प्रमुख रा.स्व.संघ)  

Wednesday, 9 June 2021

सुर्य ग्रहण2021

साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून 2021 को लगने जा रहा है। यह वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इस सूर्य ग्रहण को भारत के अरूणाचल प्रदेश , लद्दाख कुछ हिस्सों में ही देखा जा सकेगा। इस वलयाकार सूर्य ग्रहण का मतलब है कि चंद्रमा सूर्य का इस तरह ढक लेगा कि सूर्य का सिर्फ बाहरी हिस्‍सा ही दिखाई देगा। इस तरह सूर्य आग की अंगूठी की तरह दिखाई देंगे।

ज्योतिषियों की मानें तो यह ग्रहण भारत में नहीं लग रहा है इसलिए इसका कोई सूतक काल मान्य नहीं होगा। इसलिए इस ग्रहण के कारण पूजा पाठ, दान पुण्य पर कोई रोक नहीं होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, साल के पहले सूर्यग्रहण के दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या, शनि जयंती और वट सावित्री व्रत भी है। सूर्यग्रहण के दिन धृति और शूल योग भी बनेगा।
सूर्य ग्रहण तिथि: 10 जून गुरुवार की दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से समय समाप्त 10जून,शाम 06 बजकर 41 मिनट तक कुल अवधी: 4 घंटे 59 मिनट की
सूर्य ग्रहण उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया में आंशिक रूप में दिखाई देगा। जबकि ग्रीनलैंड, उत्तरी कनाडा और रूस में पूर्ण सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा ।


Thursday, 3 September 2020

भारतीय संस्कृति में तुलसी

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है।



तुलसी की पूजा करने से मन शांत रहता है। रोजाना प्रातः काल तुलसी के दर्शन करने से आरोग्यता मिलता है। इसकी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। 

तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं। तुलसी के पत्तों को आयुर्वेद में गुणों की खान माना जाता है। इसलिए इसे भगवान को लगाए जाने वाले भोग में भी शामिल किया जाता है, और प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।


तुलसी को पूजनीय माना जाता है, धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आयुर्वेद में तो तुलसी को उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है। तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।
मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।


तुलसी माला १०८ गुरियों की होती है। एक गुरिया अतिरिक्त माला के जोड़ पर होती है इसे गुरु की गुरिया कहते हैं। तुलसी माला धारण करने से ह्रदय को शांति मिलती है।

तुलसी से हमारी पूरी हेल्थ अच्छी और स्वस्थ रहती है , तो क्यों न हम हर रोज सही मात्रा में तुलसी ले , जिससे हमारे शरीर को सभी नुट्रिएंट्स मिल पाएं और हमारा शरीर  स्वस्थ रहे।

पं राकेश शुक्ल शास्त्री


Wednesday, 2 September 2020

कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है।

स्वस्तिक श्रीगणेश का ही प्रतीक स्वरूप है। किसी भी पूजन कार्य काे शुरू करने से पहले स्वस्तिक का चिन्ह जरूरी होता है। ज्योतिषी एवं वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं और स्वस्तिक का पूजन करने का मतलब है कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो।
मान्यता है कि यदि घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाया जाए और द्वार के ठीक ऊपर मध्य में तांबे का स्वास्तिक लगाया जाए तो इससे समस्त वास्तुदोष दूर हो जाते हैं। स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशांति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिह्न को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना गया है।
स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द का अर्थ हुआ 'अच्छा' या 'मंगल' करने वाला। 'अमरकोश' में भी 'स्वस्तिक' का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है। अमरकोश के शब्द हैं - 'स्वस्तिक, सर्वतोऋद्ध' अर्थात् 'सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो।' इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' शब्द की निरुक्ति है - 'स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है।

स्वस्तिक की चार रेखाएं ऋग्, यजु, साम और अथर्व आदि चारों वेद, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों सिद्धांत एवं ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति आदि चारों मार्गों की भी प्रतीक हैं। इस प्रकार से मनुष्य के जीवन चक्र जिसमें शैशव, किशोरावस्था, जवानी और बुढापा या कहें जीवन के चारों आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास का प्रतीक भी स्वस्तिक माना जाता है। 
धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।

                    पं राकेश शुक्ल शास्त्री

तुलसीदास

  “पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धरयो शरीर||" तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा...