"वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ॥
कालिदास ~~रघुवंशम्
भावार्थ: कालिदास कहते हैं मैं संसार की माता पार्वती और पिता शिव को प्रणाम करता हूँ जो वाणी (शब्द )और अर्थ के समान अलग कहलाते हुए भी परस्पर मिले हुए हैं, एक ही हैं।
समाज में व्याप्त बुराईयों का समाधान, धर्म के साथ । अगर समाज धर्म की राह पर चलता है , बुराईयां अपने आप समाप्त हो जाती है। सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥ ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
रक्षाबंधन उत्सव
भारत माता की जय
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