सुधाकर की शहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक थे, उनका सरल स्वभाव और लोककल्याण की भावना लोगों की चर्चा का विषय हुआ करतें थे। एक शाम अचानक इमेरजैंसी गाड़ी द्वारा एक वृद्ध ( अध्यापक हरिशंकर) को सड़क दुघर्टना में चोट लगने के उपरांत गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती के लाया गया। तत्काल इमेरजैंसी सेवा में लगे डॉ लोग इलाज करने लगे परन्तु ज्यादा रक्तस्राव होने के कारण वृद्ध की स्थति बिगड़ती जा रही थी । जो खुन का ग्रुप वृद्ध का था संयोग से उस समय अस्पताल में उपलब्ध नहीं था, अब स्थिति नाजुक बनती जा रही थी। अगर तत्काल खुन नहीं मिला तो वृद्ध को बचा पाना मुश्किल था, तभी डॉ सुधाकर को पता चला कि जो खुन का ग्रुप वृद्ध का वही खुन का ग्रुप हमारा, डॉ सुधाकर बिना सोचे समझे वृद्ध को अपना खुन देने का निर्णय किया, इस तरह खुन देकर डॉ सुधाकर ने वृद्ध के प्राण बचाए।
कुछ दिन बाद डॉ सुधाकर के मेज पर उस वृद्ध की फाइल लाईं गई, फाइल को देखकर डॉ सुधाकर को पता चला कि वृद्ध व्यक्ति कोई और हमारे गुरु जी हैं।
डॉ सुधाकर अपनी पिछले जीवन के बारे में सोचने लगें। डॉ सुधाकर का बचपन गरीबी और अभाव में बिता था। वृद्ध ( अध्यापक हरिशंकर) का डॉ सुधाकर के ऊपर बहुत सारे उपकार है , बचपन में अध्यापक हरिशंकर डॉ सुधाकर को पुस्तक, फीस और अध्ययन सम्पुर्ण सहयोग के कारण सुधाकर जैसे सामान्य लड़का डॉ की पढ़ाई पुरी कर एक सफल डाक्टर के रूप में शहर प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक है। यह बात डाक्टर कभी नहीं भुले थे आज जिस परिस्थिति में हुं सब गुरु जी के कारण प्राप्त हुआ।
परंतु डॉ सुधाकर को यह समझ में नहीं आ रहा था कि गुरु जी इस परिस्थिति में कैसे आए चलकर गुरु जी से पता किया जाएं।
अब वृद्ध अध्यापक की स्वास्थ में बहुत सुधार हो गया था।डॉ सुधाकर ने वृद्ध (अध्यापक हरिशंकर) के पास जाकर उनको प्रणाम किया और अपना परिचय दिया और गुरु जी से उनके बारे वृतांत से पुछा तो गुरु जी फफक कर रोने लगे काफी देर ढाढस बंधाने के बाद बोले , " बेटा सुधाकर मैं बहुत अभागा हूं, जो तुम्हारे जैसा पुत्र नहीं मिला, जब तक हमारी नौकरी थी हमारे परिजन हमारे धन का दुरूपयोग किया,सारा धन लेकर हमको घर से बाहर निकल दिया। कभी इस शहर भीख मांगते कभी उस शहर भिख मांगकर गुजारा करने लगा, सडक के किनारे से जा रहा था अचानक एक गाड़ी आई और हमको धक्का दिया और बेहोश हो गया होश में आया तो पता चला कि अस्पताल में हुं, फिर तुम मिल गये।
डॉ सुधाकर की आंखों से आंसू गिरने लगें, और अपने सम्भालते हुए डॉ सुधाकर ने कहा कि," गुरु जी अब आप को कहीं नहीं जाना है आप हमारे घर चलिए और हमारे साथ रहिए। आजीवन हम आपकी सेवा करेंगे जो भी हुं आप बदौलत हुं।
डॉ सुधाकर अपनी कार निकालें और अध्यापक हरिशंकर जी को अपने साथ लेकर अपने घर को गये।
सीख -
१.अपने ऊपर किए उपकार को कभी भुलना नहीं चाहिए।
२.परोपकार की भावना से काम करना चाहिए।
३. अगर आप किसी की मदद करते हैं तो किसी ना किसी रूप में आपका भला ही होगा।
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