।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।। ।। पोस्ट- ९८ ।। ।। जय श्री कृष्ण ।।
अजब हैरान हूं भगवन! तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं.
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं.
करें किस तौर आवाहन कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं.
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं.
तुम्हीं हो मूर्ति में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं.
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं.
लगाना भोग कुछ तुमको, यह एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं.
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अन्धेर है कैसे तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं.
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं.
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अन्धेर है कैसे तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं.
भुजाएं हैं, न गर्दन है, न सीना है न पेशानी,
तुम हो निर्लेप नारायण, कहां चंदन लगाऊँ मैं.
तुम हो निर्लेप नारायण, कहां चंदन लगाऊँ मैं.
बड़े नादान है वे जन जो गढ़ते आपकी मूरत
बनाता है जो सब जग को, उसे कैसे बनाऊँ मैं.
अजब हैरान हूं भगवन! तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं.
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। जय श्री राधे।।
बनाता है जो सब जग को, उसे कैसे बनाऊँ मैं.
अजब हैरान हूं भगवन! तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं.
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। जय श्री राधे।।
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