रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Sunday, 30 June 2019

सेवा परमो धर्म:

  सेवा परमो धर्म:

समाज के अपने बंधुओं की पीड़ा और वेदना को समझने के लिए मन संवेदनशील होना चाहिए। सेवा कोई स्पर्द्धा का विषय नहीं है। किसने अधिक सेवा की यह विचार करना निम्न स्तर की भावना है। सेवा आंकड़ों में गिनने की बात नहीं, अपितु अनुभूति का विषय है। सेवा के विषय में हमें यह समझना होगा कि सेवा कभी भी योजना करके नहीं की जाती है। जब हम समाज की वेदना और पीड़ा को समझ लेते हैं, सेवा कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

किसी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। किसी दूसरे के लिए एक छोटी-सी कोशिश करना भी सेवा मानी जाती है। हालांकि अब ज़माना लेन-देन का है, प्रॉफ़िट-लॉस का है। 'ये कर के मुझे क्या फ़ायदा होगा', इस सोच के साथ हर काम किया जाता है। सेवा के नियम इससे परे हैं। इसमें भावना दूसरे की मदद करने की होती है, आपको क्या मिलेगा, इसकी नहीं।

Saturday, 22 June 2019

भजन

।। भजन ।।
कटी जैइहै उमरिया हरी गुण गाएं से ।
हरी गुण गाएं से , प्रभु गुण गाएं से ।।
ऋषियों, मुनियों,संतों, महंतों तथा प्रभु प्रेमी भक्तों द्वारा हरी भजन ,कीर्तन करने पर विशेष महत्व बताया गया है।
भजन सुगम संगीत की एक शैली है। इसका आधार शास्त्रीय संगीत या लोक संगीत हो सकता है। इसको मंच पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन मूल रूप से यह किसी देवी या देवता की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत है। सामान्य रूप से उपासना की सभी भारतीय पद्धतियों में इसका प्रयोग किया जाता है। भजन मंदिरों में भी गाए जाते हैं। हिंदी भजन, जो आम तौर पर हिन्दू अपने सर्वशक्तिमान को याद करते हैं ,गाते हैं । कुछ विख्यात भजन रचनाकारों की नाम इस प्रकार है - मीराबाई , सूरदास, तुलसीदास और रसखान आदि हैं ।

भजन -कीर्तन करने से क्या होता है और इसे किस प्रकार करना चाहिए ? गोस्वामी जी कहते हैं कि आप भक्ति का कोई भी मार्ग अपनाएं , उसे श्रीनाम कीर्तन के संयोग से ही करें। इसका फल अवश्य प्राप्त होता है और शीघ्र प्राप्त होता है। सब कहते हैं कि भगवान का भजन करो.....भजन करो!  तो क्या करें हम भगवान का भजन करने के लिए ? सच्चे भक्तों के संग हरिनाम संकीर्तन करना ही सर्वोत्तम भगवद भजन है। सच्चे भक्तों के साथ मिलकर , उनके आश्रय में रहकर नाम- संकीर्तन करने से एक अद्भुत प्रसन्नता होती है , उसमें सामूहिकता होती है , व्यक्तिगत अहंकार नहीं होता और उतनी प्रसन्नता अन्य किसी भी साधन से नहीं होती , इसीलिए इसे सर्वोत्तम हरिभजन माना गया है।
        ।। जय श्री हरि ।।



Saturday, 15 June 2019

सर्वकामना पूर्ति रविवार व्रत एवं कथा


।। ऊँ श्री गणेशाय नमः ।। ऊँ श्री परमात्मने नमः ।।    

           ।। रविवार व्रत विधि एवं कथा ।।
रविवार सप्ताह का एक दिन है। यह शनिवार के बाद और सोमवार से पूर्व आता है। यह शब्द रवि से आया है, जिसका अर्थ सुर्य होता है। पंचाग के अनुसार यह सर्वकामना पूर्ति करनेवाला शुभ दिन है। रविवार की छुट्टी की शुरुआत सन 1843 में हुई थी। प्रायः इस दिन कार्यालयों में अवकाश रहता है , अतः सामाजिक एवं धार्मिक कार्यक्रम रविवार को ज्यादा होते है।
रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है। यह उपवास सप्ताह के प्रथम दिवस रविवार व्रत कथा को रखा जाता है।  जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर परमात्मा का स्मरण करें।
एक समय भोजन करें।
भोजन इत्यादि सूर्य प्रकाश रहते ही करें।
अंत में कथा सुनें
इस दिन नमकीन तेल युक्त भोजन ना करें।
व्रत के दिन क्या न करें
इस दिन उपासक को तेल से निर्मित नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। तत्पश्चात घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करें। पूजन के बाद व्रतकथा सुनें। व्रतकथा सुनने के बाद आरती करें। तत्पश्चात सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए सूर्य को जल देकर सात्विक भोजन व फलाहार करें।
यदि किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाए और व्रत करने वाला भोजन न कर पाए तो अगले दिन सूर्योदय तक वह निराहार रहे तथा फिर स्नानादि से निवृत्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करे।
शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य पीडित अवस्था में हो, उन व्यक्तियों के लिये रविवार का व्रत करना विशेष रूप से लाभकारी रहता है। इसके अतिरिक्त रविवार का व्रत आत्मविश्वास में वृ्द्धि करने के लिये भी किया जाता है।
कथा
एक बुढिया थी, उसके जीवन का नियम था कि वह प्रत्येक रविवार के दिन प्रात: स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर शुद्ध करती थी। इसके बाद वह भोजन तैयार करती थी, भगवान को भोग लगा कर स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। यह क्रिया वह लम्बें समय से करती चली आ रही थी। ऎसा करने से उसका घर सभी धन - धान्य से परिपूर्ण था। वह बुढिया अपने घर को शुद्ध करने के लिये, पडोस में रहने वाली एक अन्य बुढिया की गाय का गोबर लाया करती थी। जिस घर से वह बुढिया गोबर लाती थी, वह विचार करने लगी कि यह मेरे गाय का ही गोबर क्यों लेकर आती है। इसलिये वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी। बुढिया गोबर न मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से लीप कर शुद्ध न कर सकी। इसके कारण न तो उसने भोजन ही बनाया और न ही भोग ही लगाया। इस प्रकार उसका उस दिन निराहार व्रत हो गया। रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गई। रात्रि में भगवान सूर्य देव ने उसे स्वप्न में आकर इसका कारण पूछा. वृ्द्धा ने जो कारण था वह बता दिया। तब भगवान ने कहा कि :- माता तुम्हें सर्वकामना पूर्ति गाय देते हैं, भगवान ने उसे वरदान में गाय दी, धन और पुत्र दिया और मोक्ष का वरदान देकर वे अन्तर्धान हो गयें।
प्रात: बुढिया की आंख खुलने पर उसने आंगन में अति सुंदर गाय और बछडा पाया। वृ्द्धा अति प्रसन्न हो गई। जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी और साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है। उसने वह गोबर अपनी गाय के गोबर से बदल दिया। रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी। भगवान ने देखा कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है, तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया। सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही। अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी।
उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है। राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली। बुढ़िया गाय के वियोग में अखंड व्रत रखे रखा। उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया। सुर्य भगवान ने रात को राजा को सपने में गाय लौटाने को कहा।
प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया। साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया। राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया। तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे और वे खुशियों को प्राप्त हुए।
सूर्यास्त में सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद आरती का श्रवण व गायन करना चाहिए। रविवार के व्रत के विषय में यह कहा जाता है कि इस व्रत को सूर्य अस्त के समय ही समाप्त किया जाता है। अगर किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाये और व्रत करने वाला भोजन न कर पाये तो अगले दिन सूर्योदय तक उसे निराहार हीं रहना चाहिए। अगले दिन भी स्नानादि से निवृ्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

    ।। जय सुर्य नारायण भगवान की ।।




हिंदू साम्राज्य दिवस

आप सबको "हिन्दू साम्राज्य दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएं!💐

आप सभी को पता हैं कि - आज हम यहाँ "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मना रहे है. मैं आपको एक छोटी सी बात बताना चाहता हूँ. कल मैंने फेसबुक पर "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर एक लेख लिखा था . उसे देखकर कुछ मित्रों ने प्रश्न किया कि – रोज डे, चाकलेट डे, वैलेंटाइन डे, के बारे में तो सुना है, लेकिन यह "हिन्दू साम्राज्य दिवस" कब से शुरू हो गया?

इस प्रश्न को देखकर अत्यंत दुःख हुआ कि - हमारी युवा पीढ़ी किस और जा रही है? निरर्थक विदेशी दिवस तो याद हैं लेकिन जिन दिवस पर हमें अपने देश और धर्म पर गर्व करना चाहिये, वो हमको पता तक नहीं हैं. आप सभी को पता ही है कि - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा 6 त्यौहार राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाते है.

हमारे यह 6 त्यौहार है : वर्ष प्रतिपदा, हिन्दू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, विजय दशमी और मकर संक्राति. इन सभी त्योहारों को चुनने के पीछे भी अलग अलग कारण है. लेकिनं आज हम उन पर कोई चर्चा नहीं करेंगे बल्कि अपना सारा ध्यान केवल "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर ही देना चाहते हैं.

आज भारतीय कैलेण्डर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला की त्रियोदशी है. सन 1674 में आज के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक हुआ था. एक प्रश्न यह भी उठता है कि - भारत में अनेकों महान राजा हुए हैं तब "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए केवल शिवाजी के राजतिलक का दिन ही क्यों चुना गया ? इसका भी एक विशेष कारण है :

उस समय लगभग सारे भारत पर मुघलों का राज था. जिन छोटी रियासतों में हिन्दू राजा थे, वो भी दिल्ली की मुग़ल सल्तनत के अधीन ही थे. ऐसे समय में एक साधारण बालक ने असाधारण क्षमता दिखाते हुए. एक स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की. शिवाजी का जीवन प्रेरणा देता है कि - जो देश के लिए कुछ करना चाहता है उसका रास्ता कोई नहीं रोक सकता.

जिस तरह हम प्रतिदिन शाखा लगाते हैं, शिवाजी महाराज ने उसी तरह से अपने साथियों को इकठ्ठा करना प्रारम्भ किया था. वहां पर वे खेलकूद करते और देश की स्थिति पर बिचार करते थे. उनकी माता जीजाबाई उनको रामायण, महाभारत, विक्रमादित्य, प्रताप "महान", आदि की कहानिया सुनाती थी, जिनको शिवाजी अपने साथियों को जाकर सुनाते थे.

वे महाराणा प्रताप "महान" के जीवन से बहुत प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने उनके जीवन से यह सबक भी सीखा कि - केवल महान योद्धा होना और बहादुरी से लड़ते हुए मरना ही काफी नहीं है बल्कि युद्ध में जीतना सबसे ज्यादा जरुरी है. इसके लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक विकसित की. जिस गुरिल्ला युद्ध को लोग माओ की तकनीक बताते है वो उनकी तकनीक थी.

उन्होंने युद्ध की ऐसी प्रणाली बनाई कि - शत्रु पर हमला करो, उसको अधिक से अधिक नुकशान पहुँचाओ और फिर शीघ्रता से बहा से हट जाओ. इस तकनीक के सहारे उन्होंने सैकड़ों लड़ाईया जीती. अपने साथियों के साथ उन्होंने 1655 में बीजापुर की कमज़ोर सीमा चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया.

जब उनको छोटी-छोटी विजय मिलना प्रारम्भ हुई, तो उनका भी आत्मविश्वास बढ़ने लगा तथा अन्य लोग भी उनके साथ आने लगे. शिवाजी को सबक सिखाने के लिए बीजापुर के सुलतान ने कई बार कोशिश की, परन्तु शिवाजी हर वार विजयी रहे. अफजल खान का बध करने के बाद तो पूरे देश में उनके नाम का डंका बजने लगा था.

धीरे-धीरे बहुत बड़ा क्षेत्र शिवाजी महाराज के अधिकार क्षेत्र में आ गया. उनकी माता जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास चाहते थे कि - शिवाजी का राजतिलक इतना भव्य होना चाहिए कि - मुग़लो की आँखे चकाचौंध हो जाएँ, साथ ही अन्य छोटे हिन्दू राजाओं में भी स्वाभिमान की भावना जाग्रत हो. इसलिए उनके राजतिलक का भव्य आयोजन किया गया.

उनके राजतिलक को शिवाजी का राजतिलक नहीं कहा गया, बल्कि एक हिन्दू राजा का राजतिलक कहा गया. उन दिनों रियासतों में जितने भी हिन्दू राजाओं के राजतिलक होते थे, वो भी मुग़ल राजाओं की अनुमति से होते थे, यह पहला राजतिलक था जो मुगलिया सल्तनत को चुनौती देते हुए हो हुआ था. इसके बाद अनेकों छोटे राजा, शिवाजी के साथ आ गए थे.

शिवाजी महाराज का राज, पुरी तरह से हिन्दू जीवन शैली पर आधारित था, जिसमे समस्त प्रजा को एक परिवार और राजा को परिवार का मुखिया माना जाता था. शिवाजी के राजतिलक के बाद, देश के अनेको हिस्सों में मुगलों के खिलाफ आजादी की लडाइयां प्रारम्भ हो गई. पंजाब, राजस्थान, बुंदेलखंड, मालवा, गुजरात की अनेकों हिन्दू रियासतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.

इसीलिए संघ ने अपना त्यौहार "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के राजतिलक का दिन चुना. यहाँ शाखा में प्रतिदिन उनकी ही तरह खेलकूद के साथ साथ राष्ट्रवाद सिखाया जाता है, देश के प्रति समर्पण सिखाया जाता है और देश के लिए लड़ने योग्य बनना सिखाया जाता है.

आज का दिन हिदुओं के लिए बहुत ही गौरवशाली दिन है. अब मैं और ज्यादा समय न लेते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ. आपसे यही निवेदन है कि भारतीय संस्क्रती से जुड़े हुए त्योहारों को गर्व से मनाएं. इन त्योहारों को मनाने से हमें राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है.

आखिर में आप सब मेरे साथ उद्घोष करेंगे
जय शिवा सरदार की, जय राणा प्रताप की,
वन्दे मातरम, भारत माता की जय .

तुलसीदास

  “पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धरयो शरीर||" तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा...