आप सबको "हिन्दू साम्राज्य दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएं!💐
आप सभी को पता हैं कि - आज हम यहाँ "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मना रहे है. मैं आपको एक छोटी सी बात बताना चाहता हूँ. कल मैंने फेसबुक पर "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर एक लेख लिखा था . उसे देखकर कुछ मित्रों ने प्रश्न किया कि – रोज डे, चाकलेट डे, वैलेंटाइन डे, के बारे में तो सुना है, लेकिन यह "हिन्दू साम्राज्य दिवस" कब से शुरू हो गया?
इस प्रश्न को देखकर अत्यंत दुःख हुआ कि - हमारी युवा पीढ़ी किस और जा रही है? निरर्थक विदेशी दिवस तो याद हैं लेकिन जिन दिवस पर हमें अपने देश और धर्म पर गर्व करना चाहिये, वो हमको पता तक नहीं हैं. आप सभी को पता ही है कि - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा 6 त्यौहार राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाते है.
हमारे यह 6 त्यौहार है : वर्ष प्रतिपदा, हिन्दू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, विजय दशमी और मकर संक्राति. इन सभी त्योहारों को चुनने के पीछे भी अलग अलग कारण है. लेकिनं आज हम उन पर कोई चर्चा नहीं करेंगे बल्कि अपना सारा ध्यान केवल "हिन्दू साम्राज्य दिवस" पर ही देना चाहते हैं.
आज भारतीय कैलेण्डर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला की त्रियोदशी है. सन 1674 में आज के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज का राजतिलक हुआ था. एक प्रश्न यह भी उठता है कि - भारत में अनेकों महान राजा हुए हैं तब "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए केवल शिवाजी के राजतिलक का दिन ही क्यों चुना गया ? इसका भी एक विशेष कारण है :
उस समय लगभग सारे भारत पर मुघलों का राज था. जिन छोटी रियासतों में हिन्दू राजा थे, वो भी दिल्ली की मुग़ल सल्तनत के अधीन ही थे. ऐसे समय में एक साधारण बालक ने असाधारण क्षमता दिखाते हुए. एक स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की. शिवाजी का जीवन प्रेरणा देता है कि - जो देश के लिए कुछ करना चाहता है उसका रास्ता कोई नहीं रोक सकता.
जिस तरह हम प्रतिदिन शाखा लगाते हैं, शिवाजी महाराज ने उसी तरह से अपने साथियों को इकठ्ठा करना प्रारम्भ किया था. वहां पर वे खेलकूद करते और देश की स्थिति पर बिचार करते थे. उनकी माता जीजाबाई उनको रामायण, महाभारत, विक्रमादित्य, प्रताप "महान", आदि की कहानिया सुनाती थी, जिनको शिवाजी अपने साथियों को जाकर सुनाते थे.
वे महाराणा प्रताप "महान" के जीवन से बहुत प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने उनके जीवन से यह सबक भी सीखा कि - केवल महान योद्धा होना और बहादुरी से लड़ते हुए मरना ही काफी नहीं है बल्कि युद्ध में जीतना सबसे ज्यादा जरुरी है. इसके लिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक विकसित की. जिस गुरिल्ला युद्ध को लोग माओ की तकनीक बताते है वो उनकी तकनीक थी.
उन्होंने युद्ध की ऐसी प्रणाली बनाई कि - शत्रु पर हमला करो, उसको अधिक से अधिक नुकशान पहुँचाओ और फिर शीघ्रता से बहा से हट जाओ. इस तकनीक के सहारे उन्होंने सैकड़ों लड़ाईया जीती. अपने साथियों के साथ उन्होंने 1655 में बीजापुर की कमज़ोर सीमा चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया.
जब उनको छोटी-छोटी विजय मिलना प्रारम्भ हुई, तो उनका भी आत्मविश्वास बढ़ने लगा तथा अन्य लोग भी उनके साथ आने लगे. शिवाजी को सबक सिखाने के लिए बीजापुर के सुलतान ने कई बार कोशिश की, परन्तु शिवाजी हर वार विजयी रहे. अफजल खान का बध करने के बाद तो पूरे देश में उनके नाम का डंका बजने लगा था.
धीरे-धीरे बहुत बड़ा क्षेत्र शिवाजी महाराज के अधिकार क्षेत्र में आ गया. उनकी माता जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास चाहते थे कि - शिवाजी का राजतिलक इतना भव्य होना चाहिए कि - मुग़लो की आँखे चकाचौंध हो जाएँ, साथ ही अन्य छोटे हिन्दू राजाओं में भी स्वाभिमान की भावना जाग्रत हो. इसलिए उनके राजतिलक का भव्य आयोजन किया गया.
उनके राजतिलक को शिवाजी का राजतिलक नहीं कहा गया, बल्कि एक हिन्दू राजा का राजतिलक कहा गया. उन दिनों रियासतों में जितने भी हिन्दू राजाओं के राजतिलक होते थे, वो भी मुग़ल राजाओं की अनुमति से होते थे, यह पहला राजतिलक था जो मुगलिया सल्तनत को चुनौती देते हुए हो हुआ था. इसके बाद अनेकों छोटे राजा, शिवाजी के साथ आ गए थे.
शिवाजी महाराज का राज, पुरी तरह से हिन्दू जीवन शैली पर आधारित था, जिसमे समस्त प्रजा को एक परिवार और राजा को परिवार का मुखिया माना जाता था. शिवाजी के राजतिलक के बाद, देश के अनेको हिस्सों में मुगलों के खिलाफ आजादी की लडाइयां प्रारम्भ हो गई. पंजाब, राजस्थान, बुंदेलखंड, मालवा, गुजरात की अनेकों हिन्दू रियासतों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.
इसीलिए संघ ने अपना त्यौहार "हिन्दू साम्राज्य दिवस" मनाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के राजतिलक का दिन चुना. यहाँ शाखा में प्रतिदिन उनकी ही तरह खेलकूद के साथ साथ राष्ट्रवाद सिखाया जाता है, देश के प्रति समर्पण सिखाया जाता है और देश के लिए लड़ने योग्य बनना सिखाया जाता है.
आज का दिन हिदुओं के लिए बहुत ही गौरवशाली दिन है. अब मैं और ज्यादा समय न लेते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ. आपसे यही निवेदन है कि भारतीय संस्क्रती से जुड़े हुए त्योहारों को गर्व से मनाएं. इन त्योहारों को मनाने से हमें राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है.
आखिर में आप सब मेरे साथ उद्घोष करेंगे
जय शिवा सरदार की, जय राणा प्रताप की,
वन्दे मातरम, भारत माता की जय .