सेवा परमो धर्म:
समाज के अपने बंधुओं की पीड़ा और वेदना को समझने के लिए मन संवेदनशील होना चाहिए। सेवा कोई स्पर्द्धा का विषय नहीं है। किसने अधिक सेवा की यह विचार करना निम्न स्तर की भावना है। सेवा आंकड़ों में गिनने की बात नहीं, अपितु अनुभूति का विषय है। सेवा के विषय में हमें यह समझना होगा कि सेवा कभी भी योजना करके नहीं की जाती है। जब हम समाज की वेदना और पीड़ा को समझ लेते हैं, सेवा कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
किसी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। किसी दूसरे के लिए एक छोटी-सी कोशिश करना भी सेवा मानी जाती है। हालांकि अब ज़माना लेन-देन का है, प्रॉफ़िट-लॉस का है। 'ये कर के मुझे क्या फ़ायदा होगा', इस सोच के साथ हर काम किया जाता है। सेवा के नियम इससे परे हैं। इसमें भावना दूसरे की मदद करने की होती है, आपको क्या मिलेगा, इसकी नहीं।
समाज के अपने बंधुओं की पीड़ा और वेदना को समझने के लिए मन संवेदनशील होना चाहिए। सेवा कोई स्पर्द्धा का विषय नहीं है। किसने अधिक सेवा की यह विचार करना निम्न स्तर की भावना है। सेवा आंकड़ों में गिनने की बात नहीं, अपितु अनुभूति का विषय है। सेवा के विषय में हमें यह समझना होगा कि सेवा कभी भी योजना करके नहीं की जाती है। जब हम समाज की वेदना और पीड़ा को समझ लेते हैं, सेवा कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
किसी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। किसी दूसरे के लिए एक छोटी-सी कोशिश करना भी सेवा मानी जाती है। हालांकि अब ज़माना लेन-देन का है, प्रॉफ़िट-लॉस का है। 'ये कर के मुझे क्या फ़ायदा होगा', इस सोच के साथ हर काम किया जाता है। सेवा के नियम इससे परे हैं। इसमें भावना दूसरे की मदद करने की होती है, आपको क्या मिलेगा, इसकी नहीं।
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