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Saturday, 21 October 2017

कलि काल की महिमा

    

       काकभुशुण्डि  जी द्वारा कलि महिमा कहना

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित महाकाव्य श्री रामचरित मानस की मूल भाषा अवधी है।उत्तर भारत में घर घर श्री रामचरित मानस को सम्मान,आदर से पूजा, पढ़ा और गाया जाता है। श्री रामचरित मानस में काकभुशुण्डि जी ने पक्षीराज गरुड़जी से कलियुग की महिमा वर्णन किया है :- 

                                              चौपाई 

                          बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।
                          द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1॥
 भावार्थ:- कलियुग में न वर्ण धर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं।  ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥1॥ 
  
विवेचना  :-  प्रस्तुत चौपाई में काकभुशुण्डि जी के कहने का तात्पर्य यह है कि कलियुग में  वर्ण ,धर्म ,चारों आश्रम नहीं रहते है अर्थात लुप्त हो जाते है । कलियुग में शंकर वर्ण हो जायेगा जो आज के परिदृश्य में दिख भी रहा है। न धर्म का पालन होगा जैसे सत्य बोलना धर्म है परन्तु इस कलियुग में असत्य का ही बोल बाला दिखता है।  श्रुति ( जो क्रमशः सुना जाता रहा हो)को वेद कहते है. वेदों के विरोध में सब स्त्री और पुरुष लगे रहेगें। ब्राह्मण वेदों का क्रय - विक्रय करने वाले होंगे। आज कल दिख भी रहा है कि ब्राह्मण लोग वेद को भूलते जा रहे है।  जैसे अगर किसी से कहा जाय कि वेद की कोई एक कड़ी सुनाओ तो शायद ही कोई ब्राह्मण सुना पाए। राजा प्रजा को खा डालने वाले होते है अर्थात राजा प्रजा से नाना प्रकार के शोषण करती है जैसे कर ! नियम और अनुशाशन जो वेदो में कहेगे गए है ,उसकी आज्ञा कोई नहीं मानता। 
                          मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥
                          मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥2॥ 
भावार्थ:-जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित है। जो मिथ्या आरंभ करता (आडंबर रचता) है और जो दंभ में रत है, उसी को सब कोई संत कहते हैं॥2॥

विवेचना  :- जिसको जो रास्ता ( जो भाता हो) अच्छा लगता है वही उसके के लिए उत्तम है ,जो ज्यादा बोलते है ( गाल बजावा ) वही पंडित है ,जो झूठ बोलता हो,स्वांग रचता है, घमंड में चूर हो उसी को सभी संत कहते है।   

                     सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी॥
                          जो कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना॥3॥ 
भावार्थ:-जो (जिस किसी प्रकार से) दूसरे का धन हरण कर ले, वही बुद्धिमान है। जो दंभ करता है, वही बड़ा आचारी है। जो झूठ बोलता है और हँसी-दिल्लगी करना जानता है, कलियुग में वही गुणवान कहा जाता है॥3॥

 विवेचना  :- वही सयान ( बुद्धिमान ) है जो दुसरो के धन को चुरा ले चाहे कुछ भी करना पड़े चोरी ,बेईमानी आदि, जो घमंड करता हो वही सबसे बड़ा आचार-विचार वाला है , जो झूठी चिकनी - चुपड़ी बातें , हंसी - ठिठोली  करना जानता है वही इस कलियुग में गुणवान कहा जाता है। 
 
                    निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥
                        जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥4॥
भावार्थ:-जो आचारहीन है और वेदमार्ग को छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान्‌ है। जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है॥4॥ 

विवेचना  :- इस कलियुग में वही ज्ञानी और वैरागी है जो सदाचारविहीन और वेदों को छोड़ दिया है जिसने बड़े -बड़े नाख़ून और बाल धारण किये हो , वही प्रसिद्द तपस्वी है। 

सादर नमन मित्रों अपने विचार अवश्य दें। 
धन्यवाद 

जय श्री राम 

पंडित राकेश शुक्ल शास्त्री
 

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