।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
राम राम
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-
अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन,
क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि,
लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै,
तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥
भावार्थ - सूर्यभगवान के समीप में हनुमानजी विद्या पढ़ने के लिये गये, सूर्यदेव ने मन में बालकों का खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने के पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है)। हनुमानजी ने भास्कर की ओर मुख करके पीठ की तरफ से पैरों से प्रसन्नमन आकाशमार्ग में बालकों के खेल के समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ। इस अचरज के खेल को देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, रूद्र और ब्रह्मा की आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्त में खलबली-सी उत्पन्न हो गयी। तुलसीदास जी कहते हैं-सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इन सबका सार ही शरीर धारण किये हैं ? ॥
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। जय श्री राम ।।
राम राम
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-
अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन,
क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि,
लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै,
तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो॥
भावार्थ - सूर्यभगवान के समीप में हनुमानजी विद्या पढ़ने के लिये गये, सूर्यदेव ने मन में बालकों का खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने के पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है)। हनुमानजी ने भास्कर की ओर मुख करके पीठ की तरफ से पैरों से प्रसन्नमन आकाशमार्ग में बालकों के खेल के समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ। इस अचरज के खेल को देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, रूद्र और ब्रह्मा की आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्त में खलबली-सी उत्पन्न हो गयी। तुलसीदास जी कहते हैं-सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इन सबका सार ही शरीर धारण किये हैं ? ॥
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। जय श्री राम ।।
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