रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Monday, 23 April 2018

राम नाम सुखदाई

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                                  ।। जय श्री राम।।

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥

अर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं । जो इनको सच्चे मन से याद करता है, तो भाग्य और आयु में उसकी वृद्धि होती है।

श्रीमद् भगवत् पुराण के अनुसार आज भी हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करते है। बतादें कि जब श्रीराम भूलोक से बैकुण्ठ को चले गए, तो हनुमान जी ने इस पर्वत पर अपना स्थान बना लिया।
वहीं पुराणों के अनुसार गंधमादन पर्वत महादेव के निवास स्थान कैलाश पर्वत के उत्तर में अवस्थित है। बतादें कि इस पर्वत पर महर्षि कश्यप ने तप किया था। और ऐसा कहा जाता है कि यहां पर हनुमान जी के अलावा गंधर्व, अप्सराओं किन्नरों, औऱ सिद्ध श्रषियों का भी निवास स्थान है। इस पर्वत की चोटी पर कोई वाहन नहीं जा सकता। सदियो पहले ये पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। लेकिन वर्तमान में यह तिब्बत की सीमा में है।
अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुचें थे। महाभारत के अनुसार एक बार भीम गंधमादन पर्वत पहुंचा था, यहां उन्हें हनुमान जी महाराज मिले थे। हनुमान जी ने कहा कि तुम मेरी पूछ हटा कर दिखा दो, भीम को अपनी बल पर अधिक घमंड था। लेकिन भीम से हनुमान जी की पूछ नहीं हटी थी।
ऐसा कहा जाता है, कि अर्जुन ने जब असम के तीर्थ में हनुमान जी से भेंट की थी, तो हनुमान जी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ आए होंगे।

              ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                  ।।  जय श्री राम ।।
                ।। जय श्री हनुमान।।

Sunday, 22 April 2018

जय बाबा विश्वनाथ

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।। 
                                                                                                  ।। जय भोलेनाथ।।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।

शंकर जी को जप करते देख पार्वतीको आश्चर्य हुआ कि देवों के देव, महादेव भला किसका जप कर रहे हैं।पूछने पर महादेव ने कहा, 'विष्णुसहस्त्रनाम का।' पार्वती ने कहा, इन हजार नामों को साधारण मनुष्यभला कैसे जपेंगे? कोई एक नामबनाइए, जो इन सहस्त्र नामों के बराबरहो और जपा जा सके। महादेव ने कहा-राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबरहै।

भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति, राम और कृष्ण सब एक ही हैं।केवल नाम रूप का भेद है, तत्व मेंकोई अंतर नहीं। किसी भी नाम से उसपरमात्मा की आराधना की जाए, वहउसी सच्चिदानन्द की उपासना है। इसतत्व को न जानने के कारण भक्तों मेंआपसी मतभेद हो जाता है। परमात्माके किसी एक नाम रूप को अपना इष्टमानकर, एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्तिकरते हुए अन्य देवों का उचित सम्मानव उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। किसीभी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनकेप्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेवसे उदासीन रहने के समान है।

शिवपुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णुव शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं, एक-दूसरे को धारण करते हैं, एक-दूसरेके अनुकूल रहते हैं। भक्त सोच में पड़जाते हैं। कहीं किसी को ऊंचा बतायाजाता है, तो कहीं किसी को। विष्णु शिवसे कहते हैं, 'मेरे दर्शन का जो फल हैवही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदयमें रहते हैं और मैं आपके हृदय मेंरहता हूं।' कृष्ण, शिव से कहते हैं, 'मुझेआपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है, आपमुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं।'

              ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                 ।। हर हर महादेव ।।

जय राम जी की

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।। 
                   
।। जय श्री राम।।

जाकि रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।

एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गए। इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी-

"काग दही पर जान गंवायो।"

तभी वहां एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलंबित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-

"कागद ही पर जान गंवायो।"

तभी एक मजनूं टाइप लड़का पिटा,पिटाया-सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था-

"का गदही पर जान गंवायो।"

इसलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था :-

"जाकि रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।

अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है।

               ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                   ।।  जय श्री राम ।।

Sunday, 15 April 2018

जय भोलेनाथ

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                         
            शिवाय।।
  ।। ॐ नमः
अयोध्या, मथुरा, माया, काशी कांचीअवन्तिकापुरी, द्वारवती ज्ञेया: सप्तैता मोक्ष दायिका।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती,
नर्मदा सिंधु कावेरी जलेस्मिनेसंनिधि कुरू।। 
 एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी। उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है।
ब्राह्मण दम्पति ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधू ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धूबी जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो कि बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है।
साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही।
कन्या तडके ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तडके ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता है। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से १०८ बार भँवरी देकर १०८ बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है।अतः सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भँवरी (परिक्रमा करना ) देता है, उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है। जो हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन १०८ वस्तुओं की भँवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश कि पूजा करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सोमवती अमावस्या की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं!

           ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
              ।। हर हर महादेव ।।

Sunday, 8 April 2018

जय भोलेनाथ

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                         
            ।। जय भोलेनाथ ।।

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
सत्य है ईश्वर, शिव है जीवन,
सुन्दर यह संसार है
तीनो लोक हैं तुझमे,
तेरी माया अपरम्पार है

ॐ नमः शिवाय नमो, ॐ नमः शिवाय नमो
मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा 
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गाए जा 

मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा 
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गाए जा 

मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा 

पार्वती जब सीता बन कर, जय श्री राम के सन्मुख  आयी,
पार्वती जब सीता बन कर, जय श्री राम के सन्मुख  आयी,
राम ने उनको माता कह कर, शिव शंकर की महिमा गायी 
शिव भक्ति में सब कुछ सुझा, शिव से बढ़कर नहीं कोई दूजा,

बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गए जा 
मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा 

ॐ नमः शिवाय नमो, ॐ नमः शिवाय नमो
ॐ नमः शिवाय नमो, ॐ नमः शिवाय नमो

तेरी जटा से निकली गंगा और गंगा ने भीष्म दिया है,
तेरी जटा से निकली गंगा और गंगा ने भीष्म दिया है,
तेरे भक्तो की शक्ति ने सारे जगत को जीत लिया है 
तुझको सब  देवों  ने पूजा, शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा

बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गए जा
मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा

         ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
             ।। जय भोलेनाथ।।

Monday, 2 April 2018

राम राम जी

             ।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                         
                                 
।। जय श्री राम ।।

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥

भावार्थ:-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥

 नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥

भावार्थ:-हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥

 अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥

          ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
             ।। जय श्री हनुमान।।                              

तुलसीदास

  “पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धरयो शरीर||" तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा...