।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
।। जय भोलेनाथ।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।
शंकर जी को जप करते देख पार्वतीको आश्चर्य हुआ कि देवों के देव, महादेव भला किसका जप कर रहे हैं।पूछने पर महादेव ने कहा, 'विष्णुसहस्त्रनाम का।' पार्वती ने कहा, इन हजार नामों को साधारण मनुष्यभला कैसे जपेंगे? कोई एक नामबनाइए, जो इन सहस्त्र नामों के बराबरहो और जपा जा सके। महादेव ने कहा-राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबरहै।
भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति, राम और कृष्ण सब एक ही हैं।केवल नाम रूप का भेद है, तत्व मेंकोई अंतर नहीं। किसी भी नाम से उसपरमात्मा की आराधना की जाए, वहउसी सच्चिदानन्द की उपासना है। इसतत्व को न जानने के कारण भक्तों मेंआपसी मतभेद हो जाता है। परमात्माके किसी एक नाम रूप को अपना इष्टमानकर, एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्तिकरते हुए अन्य देवों का उचित सम्मानव उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। किसीभी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनकेप्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेवसे उदासीन रहने के समान है।
शिवपुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णुव शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं, एक-दूसरे को धारण करते हैं, एक-दूसरेके अनुकूल रहते हैं। भक्त सोच में पड़जाते हैं। कहीं किसी को ऊंचा बतायाजाता है, तो कहीं किसी को। विष्णु शिवसे कहते हैं, 'मेरे दर्शन का जो फल हैवही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदयमें रहते हैं और मैं आपके हृदय मेंरहता हूं।' कृष्ण, शिव से कहते हैं, 'मुझेआपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है, आपमुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं।'
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। हर हर महादेव ।।
।। जय भोलेनाथ।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।
शंकर जी को जप करते देख पार्वतीको आश्चर्य हुआ कि देवों के देव, महादेव भला किसका जप कर रहे हैं।पूछने पर महादेव ने कहा, 'विष्णुसहस्त्रनाम का।' पार्वती ने कहा, इन हजार नामों को साधारण मनुष्यभला कैसे जपेंगे? कोई एक नामबनाइए, जो इन सहस्त्र नामों के बराबरहो और जपा जा सके। महादेव ने कहा-राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे, सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबरहै।
भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति, राम और कृष्ण सब एक ही हैं।केवल नाम रूप का भेद है, तत्व मेंकोई अंतर नहीं। किसी भी नाम से उसपरमात्मा की आराधना की जाए, वहउसी सच्चिदानन्द की उपासना है। इसतत्व को न जानने के कारण भक्तों मेंआपसी मतभेद हो जाता है। परमात्माके किसी एक नाम रूप को अपना इष्टमानकर, एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्तिकरते हुए अन्य देवों का उचित सम्मानव उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। किसीभी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनकेप्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेवसे उदासीन रहने के समान है।
शिवपुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णुव शिव एक-दूसरे से उत्पन्न हुए हैं, एक-दूसरे को धारण करते हैं, एक-दूसरेके अनुकूल रहते हैं। भक्त सोच में पड़जाते हैं। कहीं किसी को ऊंचा बतायाजाता है, तो कहीं किसी को। विष्णु शिवसे कहते हैं, 'मेरे दर्शन का जो फल हैवही आपके दर्शन का है। आप मेरे हृदयमें रहते हैं और मैं आपके हृदय मेंरहता हूं।' कृष्ण, शिव से कहते हैं, 'मुझेआपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है, आपमुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं।'
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
।। हर हर महादेव ।।
No comments:
Post a Comment