रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Sunday, 22 April 2018

जय राम जी की

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।। 
                   
।। जय श्री राम।।

जाकि रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।

एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गए। इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी-

"काग दही पर जान गंवायो।"

तभी वहां एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलंबित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-

"कागद ही पर जान गंवायो।"

तभी एक मजनूं टाइप लड़का पिटा,पिटाया-सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था-

"का गदही पर जान गंवायो।"

इसलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था :-

"जाकि रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।

अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है।

               ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                   ।।  जय श्री राम ।।

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