रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Monday, 18 June 2018

ऊँ नमः शिवाय

श्री केदारनाथ को क्यों कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ?
दो मिनट की ये कहानी रोंगटे खड़े कर देगी..... !!

एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।

पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विश्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा - बेटा कहाँ से आये हो ? उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।

बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला - कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा - तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा - नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।

उन्होंने कहा - लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था - लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है। हम आपकी भक्ति को प्रणाम करते है।

।। ॐ नम: शिवाय ।।

Saturday, 16 June 2018

अष्ट चिरंजीवी

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                                                      ।। अष्ट चिरंजीवी ।।

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।

१.   हनुमान  : इन्हे कौन नही जानता | कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता श्री बालाजी महाराज पवन पुत्र थे | इनके पिता का नाम केसरी और माँ अंजना थी | परम राम भक्त और लक्ष्मण के प्राण दाता श्री हनुमान जी असुरो और राक्षको के संगारक थे |
२.  कृपाचार्य :  यह गौतम ऋषि के पुत्र थे और महाभारत काल में पांडवो और कौरवो के गुरु थे |

३.  अश्वथामा :  यह महाभारत युग में जन्मे शिव के ही अंश अवतार कहलाये | ये  गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे और कौरवों के साथ मिलकर पांडवो के विरुद्ध लड़े थे  । यह स्वभाव से उग्र और क्रोधी थे | श्री कृष्ण के श्राप के कारण ही यह युगों युगों तक  भटक रहे है |
४.  ऋषि मार्कण्डेय : यह शिवजी के अनन्य भक्त थे और इन्होने  भगवान शिव के परम मंत्र महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण ही चिरंजीवी बन गए |
५.  विभीषण:  लंका पति  रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। दैत्य होने के बाद भी यह अपने भाई के विरुद्ध श्री राम के अनन्य भक्त थे | लंका में ही राम भक्ति किया करते थे | इन्हे भजनों को सुनकर हनुमान इनसे मिले और फिर इन्हे अपने साथ श्री राम जी के पास ले गये |  श्री राम ने लंका विजय पर इन्हे ही लंका के राजा बनाया |
६. राजा बलि : राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। इन्ही के कारण भगवान विष्णु को  वामन अवतार लेना पड़ा था । उन्होंने तीन पग भूमि मांगकर त्रिलोक इनसे दान में ले लिया था | यह महादानी थे | इसी कारण यह विष्णु के अति प्रिय थे | विष्णु भगवान ने इन्हे पाना द्वारपाल भी नियुक्त कर दिया था |

७.  ऋषि व्यास :  हिन्दू धर्म में धार्मिक ग्रंथो में इनके सबसे अधिक ग्रन्थ है | इन्होने 18 महापुराण लिखे है साथ ही साथ चरणों वेदों का संपादन भी क्या है | इनके पिता  ऋषि पाराशर और माता का नाम  सत्यवती था । सावले रंग के होने से यह  कृष्ण द्वैपायन भी अपने अनुजो में  कहलाए।

८.  परशुराम :  यह भगवान विष्णु के  छठें अवतार हैं जिनके पिता  ऋषि जमदग्नि और माँ  रेणुका थीं। इनका जन्म सतयुग और त्रेता के मिलन पर हुआ था | यह ब्राह्मण है और अकेले खुद ने 21 बार इस धरती से निरंकुश क्षत्रिय राजाओं का अंत किया है | शिवजी की घोर तपस्या से इनके एक महाशक्तिशाली परशा  मिला इसलिए इन्हे परशुराम के नाम से जाना जाता है 

।। जयतु सनातन धर्म:।।

Wednesday, 13 June 2018

जय जय श्री राम

।। श्री गणेशाय नमः।।

रामदास रामायण लिखते जाते और शिष्यों को सुनाते जाते थे। हनुमान भी उसे गुप्त रुप से सुनने के लिए आकर बैठते थे। समर्थरामदास ने लिखा, "हनुमान अशोक वन में गये, वहाँ उन्होंने सफेद फूल देखे।"

यह सुनते ही हनुमान झट से प्रकट हो गये और बोले, "मैंने सफेद फूल नहीं देखे थे। तुमने गलत लिखा है, उसे सुधार दो।"

समर्थ ने कहा, मैंने ठीक ही लिखा है। तुमने सफेद फूल ही देखे थे।"

हनुमान ने कहा, "कैसी बात करते हो! मैं स्वयं वहां गया और मैं ही झूठा!"

अंत में झगड़ा रामचंद्रजी के पास पहुंचा। उन्होंने कहा, "फूल तो सफेद ही थे, परंतु हनुमान की आंखें क्रोध से लाल हो रही थीं, इसलिए वे उन्हें लाल दिखाई दिये।"

इस मधुर कथा का आशय यही है कि संसार की ओर देखने की जैसी हमारी दृष्टि होगी, संसार हमें वैसा ही दिखाई देगा।

  जय जय श्री राम

Tuesday, 12 June 2018

श्री गणेशाय नमः

।। श्री गणेशाय नमः ।।
                  ।। मंगल सुप्रभातम् ।।
पुराने समय की बात है एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। शिक्षा पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करने का समय आया, तब गुरु ने शिष्य को आशीर्वाद के रूप में एक ऐसा दर्पण दिया, जिसमें व्यक्ति के मन के छिपे हुए भाव दिखाई देते थे।शिष्य उस दर्पण को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।

शिष्य ने परीक्षा लेने के लिए दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी की ओर ही कर दिया। शिष्य ने दर्पण में देखा कि उसके गुरुजी के मन में मोह, अहंकार, क्रोध आदि बुरी बातें हैं। यह देखकर शिष्य को दुख हुआ, क्योंकि वह अपने गुरुजी को सभी बुराइयों से रहित समझता था।शिष्य दर्पण लेकर गुरुकुल से रवाना हुआ। उसने अपने मित्रों और परिचितों के सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। शिष्य को सभी के मन में कोई न कोई बुराई दिखाई दी। उसने अपने माता-पिता की भी दर्पण से ली। माता-पिता के मन में भी उसे कुछ बुराइयां दिखाई दीं। यह देखकर शिष्य को बहुत दुख हुआ और इसके बाद वह एक बार फिर गुरुकुल पहुंचा।

गुरुकुल में शिष्य ने गुरुजी से कहा कि गुरुदेव मैंने इस दर्पण की मदद से देखा कि सभी के मन में कुछ न कुछ बुराई जरूर है। तब गुरुजी ने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर दिया। शिष्य ने दर्पण में देखा कि उसके मन में भी अहंकार, क्रोध जैसी बुराइयां है।

गुरुजी ने शिष्य को समझाते हुए कहा कि यह दर्पण मैंने तुम्हें अपनी बुराइयां देखकर खुद में सुधार करने के लिए दिया था, दूसरों की बुराइयां देखने के लिए नहीं। जितना समय दूसरों की बुराइयों देखने में लगाया, उतना समय खुद को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता।हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम दूसरों की बुराइयां जानने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं। जबकि खुद को सुधारने के बारे में नहीं सोचते हैं। हमें दूसरों की बुराइयों को नहीं, बल्कि खुद की बुराइयों को खोजकर सुधारना चाहिए। तभी जीवन सुखी हो सकता है।

  जय श्रीमन्नारायण

Sunday, 10 June 2018

मदद लाल ढींगरा जी

मदनलाल धींगड़ा
अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत

मृत्यु17 अगस्त 1909
पेंटविले जेल, लन्दन यू॰के

मदनलाल धींगड़ा का जन्म १८ सितम्बर सन् १८८३ को पंजाब प्रान्त सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया।
मदनलाल को जीवन यापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया।
 कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् १९०६ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही, इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।
लन्दन में धींगड़ा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आये। वे लोग धींगड़ा की प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदनलाल धींगड़ा इण्डिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था।
 ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और धींगड़ा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया।

कर्जन वायली का वध

१ जुलाई सन् १९०९ की शाम को इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं। उसके बाद धींगड़ा ने अपने पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया।

अभियोग

२३ जुलाई १९०९ को धींगड़ा मामले की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और १७ अगस्त सन् १९०९ को लन्दन की पेंटविले जेल में फाँसीपर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। मदनलाल मर कर भी अमर हो गये।

महान स्वतंत्रता सेनानी मदन लाल ढींगरा जी कोटि-कोटि नमन वंदन

Saturday, 9 June 2018

जय सूर्य देव

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                                                 ।। जय श्री सूर्य नारायण ।।

नमस्सविते, सूर्याय, भास्कराय, विवस्वतै ।
आदित्यादिभूताय, देवांनीनाम नमस्तुते ।।

सूर्य देव को जल अर्पित करने का भी एक विधान है। यदि आप विधानपूर्वक उन्हें अर्घ्य नहीं देंगे तो सकारात्मक की बजाय नकारात्मक परिणाम मिलेंगे। अपकी जन्मकुंडली में सूर्य शुभ है तो समाज में मान-सम्मान के साथ-साथ उच्च पद की भी प्राप्ति होगी। हंसते-खेलते परिवार का साथ मिलेगा और रोगों से कोसों दूर रहेंगे। यदि सूर्य कमजोर है तो जीवन में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सूर्य देव को अर्घ्य देते वक्त रखें ध्यान

१.ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। साफ और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
२.जब सूर्य लालिमा युक्त हो उस समय उनके दर्शन करके अर्घ्य देना शुभ होता है।
३.अर्घ्य देते समय हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें  शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य देव को जल अर्पित करने से नवग्रह की भी कृपा रहती है।
४.तीन परिक्रमा करें।
५ मनोवांछित फल पाने के लिए प्रतिदिन इस मंत्र का उच्चारण करें- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

              ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                 ।। जय सूर्य देव ।।

Friday, 8 June 2018

जय श्री राम जी

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                                                                                                             
 ।। जय जय श्री राम ।।

श्रीगणपति श्रीगुरु नमो, नमो कवीश कपीस।
सब सन्तों के चरण में, नवा रहा हूँ शीश।।
उमा-शम्भु में जिस तरह हुआ रुचिर संवाद।
पहले उसी प्रसंग का, करना है अनुवाद।।
भारत में विख्यात है-सुन्दर गिरि कैलास।
गिरिजापति गिरिजा-सहित करते जहाँ निवास।।
उस तपोभूमि पर एक दिवस वट के नीचे बैठे हर थे।
सच्चिदानन्द के चिन्तन में एकाग्रचित भूतेश्वर थे।।

भगवान् त्रिलोचन के समीप भगवती उमा थी भ्राज रही।
मानों दाएँ हों परम पुरुष, बाएँ-दिशि प्रकृति विराज रही।।
खुली जभी योगेश की, वह समाधि अविराम।
मुख से निकला शब्द यह-‘जय मायापति राम’।।

राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्हा। सनमुख संकर आसनु दीन्हा॥
शिवजी रामनाम का स्मरण करने लगे, तब सतीजी ने जाना कि अब जगत के स्वामी (शिवजी) जागे। उन्होंने जाकर शिवजी के चरणों में प्रणाम किया। शिवजी ने उनको बैठने के लिए सामने आसन दिया॥

गिरी गिरिसुता चरण में, तभी जोड़करहाथ।
पूर्व जन्म की यादकर, बोल उठीं-‘हे नाथ’।।
यह मायापति हैं राम कौन ? जिनकी इतनी धुन है मन में ?
क्या वही जानकी-जीवन हैं, जो व्याकुल बिचरे हैं वन में ?
            ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
                  ।। जय श्री राम।।

तुलसीदास

  “पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धरयो शरीर||" तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा...