रक्षाबंधन उत्सव

भारत माता की जय

Monday, 29 January 2018

जय हो पवनकुमार

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।                   
       
।। जय हो पवनकुमार।।

गोस्वामितुलसीदासकृत
हनुमानबाहुक
छप्पय
सिंधु-तरन, सिय सोच हरन, रबि-बालबरन-तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥
कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-बिकट॥1॥

 भावार्थ - जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्री जानकीजी के शोक को हरने वाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरतवाले और मानो काल के भी काल हैं। लंका-रूपी गंम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहोंवाले तथा बलवान राक्षसों के मान और गर्व का नाश करने वाले हैं, तुलसीदासजी कहते हैं - वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिए सदा समीप रहने वाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करने वाले हैं॥1॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरून-तेज-घन।
उर बिसाल, भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसीदास बस जासु उर मारूतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरूष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥2॥

 भावार्थ - वे सुवर्णपर्वत (सुमेरू) के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्यान्ह के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विशालहृदय, अत्यन्त बलवान भुजाओं वाले तथा वज्र के तुल्य नख और शरीर वाले हैं। उनके नेत्र पीले हैं, भौंह, जीभ, दाँत और मुख विकराल हैं, बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दल के बल का नाश करने वाली है। तुलसीदासजी कहते हैं- श्री पवनकुमार की डरावनी मूर्ति जिसके हृदय में निवास करती है, उस पुरूष के समीप दुःख और पाप स्वप्न में भी नही आते॥2॥

 ।। जयतु सनातन धर्मः ।।
   ।। जय श्री राम।।

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