।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
।। पोस्ट-१९।। ।। श्री गणेश जी एकदंत कैसे कहलाए।।
एकदंताय वक्रतुंडाय गौरीतनयाय धीमहि।
गजेशानाय भालचन्द्राय श्रीगणेशाय धीमहि।।
हमारे धर्म ग्रन्थ इसके पीछे अलग अलग कथाएं बताते है | आइये जाने कौन कौनसी कथाएं है गणेशजी के एकदंत होने के पीछे :
पहली कथा : परशुराम जी अपने परशे से तोड़ा गणेश जी का एक दांत
एक बार विष्णु के अवतार भगवान परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर आये | शिव पुत्र गणेश जी ने उन्हें रोक दिया और मिलने की अनुमति नही दी | इस बात पर परशुराम जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्री गणेश को युद्ध के लिए चुनौती दी दी | श्री गणेश भी पीछे हटने वालो में से नही थे | दोनों के बीच घोर युद्ध हुआ | इसी युद्ध में परशुराम के फरसे से उनका एक दांत टूट गया |
दुसरी कथा: कार्तिकेय ने ही तोड़ा गणेश जी का दांत
भविष्य पुराण में एक कथा आती है जिसमे कार्तिकेय ने श्री गणेश का दन्त तोडा | हम सभी जानते है की गणेशजी अपने बाल अवस्था में अति नटखट हुआ करते थे | एक बार उनकी शरारते बढती गयी और उन्होंने अपने ज्येष्ठ भाई कार्तिकेय को परेशान करना शुरू कर दिया | इन सब हरकतों से परेशान होकर एक बार कार्तिकेयजी ने उनपर हमला कर दिया और भगवान श्री गणेश को अपना एक दांत गंवाना पड़ा | कुछ फोटो में गणेशजी के हाथ में यही दांत दिखाई देता है |
तीसरी कथा: वेदव्यास जी की महाभारत लिखने के लिए खुद गणेश जी ने तोड़ा अपना दांत
महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। इसमें एक लाख से ज्यादा श्लोक हैं। महर्षि वेद व्यास के मुताबिक यह केवल राजा-रानियों की कहानी नहीं बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कथा है। इस ग्रंथ को लिखने के पीछे भी रोचक कथा है।
महर्षि वेदव्यास जी को महाभारत लिखने के लिए बुद्धिमान किसी लेखक की जरुरत थी | उन्होंने इस कार्य के लिए भगवान श्री गणेश को चुना | श्री गणेश इस कार्य के लिए मान तो गये पर उन्होंने एक शर्त अपनी भी रखी की वेदव्यास जी महाभारत लिखाते समय बोलना बंद नही करेंगे | तब श्री गणेश जी ने अपने एक दांत को तोड़कर उसकी कलम बना ली वेद व्यास जी के वचनों पर महाभारत लिखी |
चौथी कथा: एक असुर का वध करने के लिए गणेश जी ने लिया अपनें दांत का सहारा
गजमुखासुर नामक एक महा बलशाली असुर हुआ जिसने अपनी घोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त कर लिया की उसे कोई अस्त्र शस्त्र से मार नही सकता | यह वरदान पाकर उसने तीनो लोको में अपना सिक्का जमा लिया | सब उससे भय खाने लगे | तब उसका वध करने के लिए सभी ने भगवान श्री गणेश को मनाया | गजानंद ने गजमुखासुर को युद्ध के ललकारा और अपना एक दांत तोड़कर हाथ में पकड़ लिया | गजमुखासुर को अपनी मृत्यु नजर आने लगी | वह मूषक रूप धारण करके युद्ध से भागने लगा | गणेशजी ने उसे पकड़ लिया और अपना वाहन बना लिया |
क्रमशः :-
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
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