।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
छठी पोस्ट -
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं |
भगवान विष्णु जी और नारद मुनि जी की यह बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायक कथा है।
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिया भगत कोन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नराद मुनि की बात, ओर मुस्कुरा कर वोले ! मेरा सब से प्रिया भगत उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, ओर फ़िर से एक प्रशन किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिया क्यो नही?
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दो गे, जाओ एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, ओर उस ने अब से पहले अपने जानवरो को चारा बगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ थोऎ, देनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया|
और शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पांओ धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बेठ कर खाना खाया, ओर कुछ बाते की ओर फ़िर सो गया|
अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, ओर बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का ध्यान किया, ओर मे तो चोबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का सब से प्रिय भगत वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा, अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना|
और भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिकिरमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भगती ओर पुन्य नष्ट हो जाये गे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मेने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा ओर इस दोराना तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता|
भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमत रुप से मेरा स्मरण करता है, क्यो कि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिया भगत हुआ, तुम तो सार दिन खाली बेठे ही जप करते हो, ओर जब तुम्हे कर्म दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है|
जय श्रीमन्नारायण
क्रमशः :-
।। जयतु सनातन धर्मः ।।
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