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भारत माता की जय

Tuesday, 7 November 2017

यज्ञोपवीत

।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
                 पांचवी पोस्ट -
                * यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) *
भए कुमार जबहिं सब भ्राता।
दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई।
अलप काल बिद्या सब आई॥

ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं॥

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज: ।।

जैसे पत्थर ही भगवान नहीं होता,प्रत्यूत मंत्रों से भगवान को उसमें प्रतिष्ठित किया जाता है, वैसे ही यज्ञोपवीत धागा मात्र नहीं होता। प्रत्यूत निर्माण के समय से ही यज्ञोपवीत में संस्कारों का आधान होने लगता है।बन जाने पर इसकी ग्रंथियों में और नवों तंतुओं में ओंकार, अग्नि आदि भिन्न भिन्न देवताओं के आवाहन आदि कर्म होते हैं।

यज्ञोपवीत- धारण करने की आवश्यकता:-
उपनयन के समय पिता तथा आचार्य द्वारा त्रैवर्णिक वटुओं को जो यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है, ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ तीनों आश्रमों में उसे अनिवार्य अखण्ड रूप में धारण किए रहने का शास्त्रों का आदेश है । किंतु धारण किया हुआ यज्ञोपवीत अवस्था विशेष में बदलकर नवीन यज्ञोपवीत धारण करना पड़ता है।

यज्ञोपवीत कब बदले ?:-
यदि यज्ञोपवीत कंधे से सरककर बायें हाथ के नीचे आ जाय , गिर जाय, कोई धागा टुट जाय, शौच आदि के समय कानपर डालना भुल जाय और अस्पृश्य से स्पर्श हो जाय तो नया यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए। गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रम वाले को दो यज्ञोपवीत पहनना चाहिए।
ब्रह्मचारी एक जनेऊ पहन सकते हैं। चार महीने बीतने पर नया यज्ञोपवीत पहन लें। इसी तरह उपाकर्म में,जननाशौच और मरणाशौच में, श्राद्ध में,यज्ञ आदि में, चंद्र ग्रहण और सुर्य ग्रहण के उपरांत भी नये यज्ञोपवीतों का धारण करना अपेक्षित है। यज्ञोपवीत कमरतक रहें।लोग सुविधा के लिए एक वर्ष के लिए श्रावणी में यज्ञोपवीत को अभिमंत्रित कर रख लेते हैं और आवश्यकता पड़ने पर धारण विधि से पहन लेते हैं।

जीर्ण यज्ञोपवीत का त्याग:-
पुराने जनेऊ को कण्ठी जैसा बनाकर सिरपर से पीठ की ओर निकाल कर उसे जल में प्रवाहित कर दें। इसके बाद यथाशक्ति गायत्री मंत्र का जप करें, फिर हाथ जोड़कर भगवान का स्मरण करें।
ॐ तत्सत् श्रीब्रह्मार्पणमस्तु।

शेष क्रमशः :-
।। जयतु सनातन धर्मः ।।

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